Some things look different as you go closer.. Known yet unknown like the color gray.. Not allowed to sway, too much yet unclear in a way.. Life is not black n white as they all say.. Life swivels in gray.. I’m not afraid of darkness but brightness of the day The truth fades with each…
जो कही ना गई
ऐसे तो ना देखो थोड़े से जो डगमगा रहे हैं यह क्या कम है बेमानी इस दुनियामें कुछ चिराग़ जगमगा रहे हैं फ़ितरतमें नहीं जो बरबादी का बिछाएं शेराह आज़ मग़र उनके लिए नहीं अपने लिए गा रहे हैं बेनूर शेर मेरे फ़िराक़से हैं किसीके फ़िरभी हैं खड़े महफ़िल में फ़िरभी उम्मीद जगा रहे हैं…
यह दुनियाँ बड़ी झूटी है
नशें मैं हम हैं ना जगाओ नशा तो ऊनपे हैं जो ना पी है सच और झूठ इनसे ना पूछो यह दुनियाँ बड़ी झूटी है हम क़ाफ़िर है या मोमिन यह तो बस ख़ुदा के है हाथ इन गुन्हेगारोंसे अब ना पूछो यह दुनियाँ बड़ी झूटी है एक तरफ़ जमाने का डर दूसरी तरफ़ है…
कारवाँ
हम उनमेसे नहीं जो मंज़िल मिलतेही कश्ती को भूल जाए नादाँ हैं वह जो समझते हैं के कारवाँ यही पे ख़त्म होता है !
वक़्त
ए दिल कुछ तो सब्र कर सुखा पत्ता भी नहीं गिरता अपने वक़्त से पहले ! चले गए जल्दी थी जिनको खुदा भी दुवा नहीं सुनता अपने वक़्त से पहले ! पाएगा मंज़िल एक दिन राही गाएगा यही एक दिन राही रौब न कर इतना खुदपे राही आसमाँ भी नहीं झुकता अपने वक़्त से पहले…
देर
आज समझा तेरी हमदर्दी का सबब हवा का रुख बदलते देर नहीं लगती कल जो दुवा अझीम थी आज हराम है तेरे ईमान को बदलते देर नहीं लगती कल तक क़ातिल था आज भगवान है ईन्सानियत भी बदलते देर नहीं लगती एक पल में सच्चाई गुम हो जाती है इन मुखौटों को बदलते देर नहीं…
दर्द
दर्द देनेके बाद कहते हो के माफ़ करदो उस वक़्त ही ज़हर दिया होता तो आज ना रोते हम ! मंजिल ना मिलने का ग़म नहीं है मुझे मगर वह मोड़ न आता तो यूँ बेआबरू ना होते हम ! कुछ टूटे सपनोंको समेटा है आज ही राही ग़र उम्मीद ना दी होती तो आजभी…
जुस्तजू
हम ईस जुस्तजूमें बरबाद हुए हम गुमनाम रहे वे आबाद हुए ऐतबार था कारवाँ ए नादानी पर खताही सही मौजोंकी रवानी पर गिरते संभलते रहे हम हर क़दम मंजिल न मिली न ही आझाद हुए बनते बिगड़ते ख़्वाब हैं मुकद्दर हर मोड़ एक तूफ़ान है मुकद्दर वफ़ा ए ख्वाबका यही सिला है चुप रहे ख़ामोशसी फर्याद हुए अब ना ख्वाब हैं ना मंज़िल…
सच
सच बिकता नहीं सच की आड़ में ख़ामोशी है बहाना कुछ बोला न जाए चुप रहाभी न जाए ज़माना है अंजान या यह भी है कोई फ़ितना ए सितम सच कहा न जाए और सहाभी न जाए
फ़िराक़
हम तो नवाझीश की थे फ़िराक़ में वे तो यूँ आए और यूँ ही चल दिए राततो सो न सकी हवा के अज़ाब में शमाँ बुझ गई तो ख़ुदही जल दिए ऐतबार तो फिरभी है वफ़ा ए यार में आहट आतेही फिरसे मचल दिए बताके बताया नहीं कुछ जवाब में सुकून ना मिला ना ही…